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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

अध्याय - 3

हिन्दी साहित्य का काल विभाजन, नामकरण एवं उनकी समस्यायें

 

प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।

अथवा
नामकरण सम्बन्धी मतभेदों का युक्तियुक्त विश्लेषण कीजिए।

उत्तर -

हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या

काल की धारा सर्वदा से ही अजर गति से प्रवाहमान है वह अखंड है उसे सीमाबद्ध नहीं किया जा सकता है। फिर भी साहित्य के बृहद् स्वरूप को देखते हुए बौद्धिक, वैज्ञानिक एवं सुबोध अध्ययन हेतु उसे भागों, खण्डों, उप विभागों, उपखण्डों में विभक्त करना आवश्यक सा प्रतीत होता है। ठीक वैसे ही जैसे कि एक बड़े विस्तृत राज्य को सुव्यवस्थित रखने के लिए विभिन्न प्रान्तों में बाँटना, पर साहित्य की धारा नदी की धारा के समान अखण्ड और अक्षुण्य रूप से सतत् प्रवाहमान रहती है, में उसे काल के बाँध बनाकर विभाजित करना यदि असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य हैं, किन्तु जिस प्रकार एक ही नदी के किनारे पर हम थोड़ी-थोड़ी दूरी से घाट बना लेते हैं और स्थान-स्थान पर उस नदी को स्थान, विशेष के आधार पर विविध विशेषणों से संज्ञायित करते रहते हैं, यथा- गढ़मुक्तश्वर गंगा, हरिद्वार गंगा, प्रयाग गंगा, काशी गंगा आदि इसी प्रकार साहित्य धारा भी जहाँ-जहाँ किन्हीं कारणों से नया मोड़ लेती है वहीं उसे काल सीमा में बाँधकर, मोड़ की प्रवृत्ति विशेष को ध्यान में रखते हुए नामांकित करने का प्रयास किया जाता है। लेकिन परिस्थितियों के साथ बदल जाने पर भी मानव चेतना की कोई एक निश्चित सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती जहाँ से वह एक दिशा को छोड़कर पूर्णतः दूसरी ओर उन्मुख हो जायें। साथ ही एक विचारधारा कुछ समयोपरान्त यदि काल की कठोरता में दब जाती है, तो उपयुक्त पृष्ठभूमि पाने पर पुनः उभरती. हुई दिखाई देने लगती हैं और एक ही समय में भी अनेक प्रवृत्तियाँ दृष्टिगत होती है। ऐसी स्थिति में साहित्येतिहास का काल विभाजन करते हुए निम्नांकित समस्याएँ सम्मुख आती हैं

(1) काल विभाजन का आधार क्या हो? रचनाओं की प्रवृत्ति अथवा समय।
(2) काल का नामकरण किस आधार पर हो?
(3) कालावधि का निर्णय किस आधार पर किया जाये?
(4) काल विरुद्ध अथवा कालगत प्रवृत्ति से पृथक् (विशेष) एवं अवशिष्ट प्रवृत्तियों को काल- सीमा में किस तरह समाहित समाविष्ट किया जाये?

हिन्दी साहित्येतिहास: काल विभाजन और नामकरण - हिन्दी साहित्येतिहास अपने आविर्भाव समय से ही विभाजन एवं नामकरण सम्बन्धी विवादों से घिरा रहता है। हिन्दी के अनेक विद्वानों एवं साहित्येतिहास लेखकों ने समय-समय पर अपने दृष्टिकोण से इसका विभाजन एवं नामकरण किया है। इन विद्वानों में सर जार्ज अब्राह्म ग्रियर्सन, मिश्रबन्धु आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डॉ. रामकुमार वर्मा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र आदि हैं।

हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण  - हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में प्रारम्भिक इतिहासकारों गासी -द-तासी, मौलबी करीमुद्दीन और शिवसिंह सेंगर ने तो इस ओर ध्यान ही नहीं दिया सामग्री संकलन की दृष्टि से इनके इतिहास, उल्लेखनीय अवश्य हैं। पर इन तीनों लेखकों के इतिहास ग्रन्थों में काल विभाजन तथा नामकरण का अभाव है।

(क) डॉ. ग्रियर्सन का काल विभाजन एवं नामकरण - डॉ. ग्रियर्सन का `माडर्न वर्नाक्यूलर लिट्रेचर ऑफ नादर्न हिन्दोस्तान' हिन्दी का प्रथम इतिहास ग्रन्थ हैं, जिसमें काल विभाजन और नामकरण किया गया है। उन्होंने काल विभाजन का स्पष्ट निर्देश निम्न प्रकार किया है।

(1) चरणकाल (700 से 1400 ई0)
(2) पन्द्रहवीं शती का धार्मिक पुनर्जागरण
(3) जायसी की प्रेम कविता
(4) ब्रज का कृष्ण सम्प्रदाय (1500 से 1600 ई0)
(5) मुगलदरबार
(6) तुलसीदास
(7) रीतिकाव्य
(8) तुलसीदास के अन्यपरवर्ती
(9) अठारहवीं शताब्दी
(10) कम्पनी के शासन में हिन्दुस्तान
(11) विक्टोरिया के शासन में हिन्दुस्तान
(12) विवध अज्ञात कवि।

आलोचना - जार्ज ग्रियर्सन का यह काल विभाजन, काल विभाजन न होकर साहित्य के इतिहास के भिन्न-भिन्न अध्यायों के नामकरण हैं। इसमें साहित्य की कतिपय सीमित प्रवृत्तियों का ज्ञान तो हो जाता है, किन्तु ऐतिहासिक चेतना का समग्र अवबोध सम्भव नहीं है। अतः डॉ. ग्रियर्सन के विभाजन को वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता है।

(ख) मिश्रबन्धुओं का काल विभाजन और नामकरण - मिश्रबन्धुओं ने अपने ग्रन्थ, मिश्रबन्धु विनोद में हिन्दी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण इस प्रकार किया है-

(1) आरम्भिक काल
(अ) पूर्वारम्भिक काल (700 से 1343 वि0)
(ब) उत्तराम्भिक काल (1344 1444 वि0)
(2) माध्यमिक काल (
अ) पूर्व माध्यमिक काल (1445-1560)
(ब) प्रौढ़ माध्यमिक काल (1561-1680 वि0)
(3) अलंकृत काल
(अ) पूर्वालंकृत काल (1681-1790 वि0)
(ब) उत्तरालंकृत काल (1791-1889 वि0)
(4) परिवर्तना (स0 1890- 1925)
(5) वर्तमानकाल (1926 से अद्यावधि तक)

आलोचना - मिश्रबन्धुओं का यह काल विभाजन ग्रियर्सन के काल विभाजन से अच्छा है। इसमें अपेक्षाकृत प्रौढ़ता मिलती है, किन्तु इसमें भी कई असंगतियाँ हैं।

(1) सर्वप्रथम दोष तो यह है कि मिश्रबन्धुओं ने भी 900 से 1300 ई. तक के अपभ्रंश भाषा के साहित्य को हिन्दी साहित्य की परिधि में समेट लिया है।
(2) अलंकृत काल और परिवर्तन काल नामकरण समीचीन नहीं है।

(ग) आचार्य शुक्ल का काल विभाजन और नामकरण - हिन्दी साहित्य के इतिहास का प्रामाणिक और उत्कृष्ट काल विभाजन सर्वप्रथम आचार्य शुक्ल का मिलता है। अपभ्रंश को पुरानी हिन्दी मानकर काल विशेष में ग्रन्थों की प्रसिद्धि और प्रचुरता को दृष्टि में रखते हुए उन्होंने 1000 वर्षों के हिन्दी साहित्य के इतिहास को चार भागों में बांटा हैं -

(1) आदिकाल या वीरगाथाकाल (सं0 1050 1375 तक)
(2) पूर्व मध्यकाल या भक्तिकाल (सं0 1375-1700 तक)
(3) उत्तर मध्यकाल या रीतिकाल (सं0 1700 1900 तक)
(4) आधुनिककाल या गद्यकाल (सं0 1900-1984 तक)

प्रवृत्ति विशेष के आधार पर काल का नामकरण करके उन्होंने अन्य विषयक रचनाओं को फुटकल के अन्तर्गत रखा है।

आलोचना - शुक्ल जी ने साहित्य का काल विभाजन ठोस आधार पर किया है। उनका काल विभाजन, सरल, सुस्पष्ट और संक्षिप्त है और प्रायः सभी विद्वानों, साहित्यकारों, इतिहासकारों और आलोचकों द्वारा स्वीकार किया गया है, किन्तु इस काल विभाजन को भी सर्वथा निर्दोष नहीं मान सकते हैं। इसकी भी अपनी परिसीमाएँ हैं

(1) आचार्य शुक्ल ने आदिकाल के लिए वीरगाथाकाल नाम दिया है, वह समीचीन नहीं है।
(2) शुक्ल जी ने पूर्व मध्यकाल को भक्तिकाल नाम दिया है, पर आधुनिक अनुसंधान से प्राप्त नवीन सामग्री प्राप्त हो जाने पर अब पूर्वमध्यकाल को भक्तिकाल नाम देना समीचीन नहीं है।
(3) प्रबुद्ध इतिहास लेखक - शुक्ल जी के काल विभाजन, काल सीमा निर्धारण, काव्य धाराओं के वर्गीकरण, काव्यधाराओं के मूल स्रोतों के संकेतीकरण आदि को संदेह की दृष्टि से देखता है।

(घ) डॉ. रामकुमार वर्मा का काल विभाजन और नामकरण - डॉ. वर्मा ने शुक्ल जी के प्राकृताभास हिन्दी के विचार को और आगे बढ़ाकर हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ सं0 750 से मानते हुए निम्न विभाजन प्रस्तुत किया है -

(1) संधिकाल (750-1000 वि0)
(2) चारणकाल (1000-1375 वि0)
(3) भक्तिकाल (1375-1700 वि0)
(4) रीतिकाल (1600-1900 वि0)
(5) आधुनिक काल (1900 से अब तक)

आलोचना - डॉ. वर्मा की संधिकाल की मान्यता अधिक तर्कसंगत प्रतीत नहीं होती। अपभ्रंश में हिन्दी का स्वरूप खोजकर उसके साहित्य को इतना पीछे तक ले जाना उचित नहीं है।

(ङ) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का काल विभाजन और नामकरण - अपभ्रंश और हिन्दी के अन्तर को पूर्ण रूप से समझते हुए आचार्य द्विवेदी ने वास्तविक हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ 15वीं शताब्दी (भक्तिकाल) से माना है। 10वीं से 14वीं शतीं को भी आदिकाल नाम देकर समाहित कर लिया है। उनका काल विभाजन इस प्रकार हैं -

(1) आदिकाल (1000-1400 ई. तक)
(2) भक्तिकाल (15वीं शतीं से 16वीं शती के मध्य भाग तक)
(3) रीतिकाल (16वीं शती के मध्य भाग से 19वीं शती के मध्यभाग तक)
(4) आधुनिक काल (19वीं शती के मध्यभाग से अद्यतन)

(च) डा. नगेन्द्र का काल विभाजन और नामकरण - डॉ. नगेन्द्र ने अपनी पुस्तक हिन्दी साहित्य का इतिहास (पूर्व पीठिका) में विभिन्न आधारों को ग्रहण करते हुए काल विभाजन एवं नामकरण निम्न प्रकार से दिया है -

(1) आदिकाल (सातवीं शती के मध्य से चौदहवीं शती के मध्य तक)
(2) भक्तिकाल (चौदहवीं शती के मध्य से सत्रहवीं शती के मध्य तक)
(3) रीतिकाल (सत्रहवीं शती के मध्य से उन्नीसवीं शती के मध्य तक)
(4) आधुनिककाल (उन्नीसवीं शती के मध्य से अब तक) 

(अ) पुनर्जागरणकाल (भारतेन्दु युग) (सन् 1857-1900 ई0)
(ब) जागरण सुधार काल (द्विवेदी युग) (सन् 1900 से 1918 ई. तक)

(स) छायावाद काल (सन् 1918 से 1938 ई. तक)
(द) छायावादोत्तरकाल
(य) प्रगति प्रयोग हेतु युग (सन् 1938 से 1953 ई. तक)
(र) नवलेखन युग (सन् 1953 ई. से अब तक)

आलोचना - डॉ. नगेन्द्र का काल विभाजन वैज्ञानि और सुव्यवस्थित है। इसमें काल-क्रम और प्रवृत्तियों का पूरा ध्यान रखा गया है।

निष्कर्ष - अपनी सरलता, सुबोधता और सुस्पष्टता के कारण आचार्य शुक्ल का विभाजन ही अधिक प्रभावपूर्ण है। 'आज उसमें संशोधन की आवश्यकता है न कि आमूल परिवर्तन की विशेष रूप से आदिकाल की सीमा व नामकरण तथा आधुनिकाल के स्वरूप निर्धारण में। चूँकि आधुनिकता पर कहीं न कहीं तो बन्धन होना ही चाहिए। इसकी विविध शाखा प्रशाखाओं को देखते हुए केवल गद्यकाल कहना उपयुक्त नहीं है। यदि अंग्रेजी शासन के प्रारम्भ से इसका आविर्भाव माना जाता है, तो उसकी समाप्ति के साथ ही सीमान्त भी हो जाना चाहिए और आगामी युग को स्वातन्त्र्योत्तरकालं की संज्ञा दी जा सकती है अथवा पूर्व को जागरणकाल व पश्चात् को आधुनिक काल की संज्ञा देना अधिक उपयुक्त होगा। इन परिसीमाओं के बावजूद भी अनेक इतिहास लेखन का प्रयास एक ऐसा नींव का पत्थर है, जिसके बिना किसी भी भव्य भवन का निर्माण सम्भव नहीं है अथवा मील के पत्थर के समान है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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